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हरित क्रांति" अब किसानो के लिए "विनाशकारी क्रांति"

"हरित क्रांति" अब किसानो के लिए "विनाशकारी क्रांति"

गौभक्त पत्रकार
समरथसिंह राठौड़ जालोर से
मोदरान न्यूज के लिए
हरित क्रांति के नाम पर सरकार ने सन् 1960 में किसानो को आधुनिक खेती के लिए प्रेरित किया था। क्योंकि उस वक्त हमारे देश में खाद्दान्न पर बहोत बड़ा संकट आया हुआ था। इससे देश में खाने के अन्न की भरी कमी हुई और इस समस्या से लड़ने हेतु सरकार ने रासायन खेती अपनाने को किसानो को कहा गया। इस दौर में संकर बिज , रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओँ का भरपूर इस्तेमाल करवाया था। इन सबसे अन्न का उत्पादन भी बढ़ा और भारत देश अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया । लेकिन आज इस नई व विकशित शैली से की जाने वाली खेती के दुष्परिणाम सामने आ गए है। वैज्ञानिकों के अनुसार जहाँ एक और किसानों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है , वहीँ दूसरी और इस तरह से उपजाए गए अन्न से पर्यावरण व् मानव शरीर पर बुरा असर पड़ा है।

हजारों साल पहले खेती योग्य भूमि पहाड़ो से निकलने वाली नदियों के द्वारा लाई गई मिटटी से तैयार हुई थी। इस तरह के उपजाऊ मैदान प्रकृति द्वारा तैयार होने में हजारों साल लग जाते है। नदियों द्वारा लाई गई इस मिट्टी में कई तरह के खनिज पदार्थ व् पोषक तत्व होते है, जो इस मिट्टी को उपजाऊ बनाते है। 
एक पौधे को स्वस्थ रहने के  लिए मुख्यतः 14 पोषक तत्वों (जैसे शुगर, एमिनो एसिड, नाइट्रोजन , फास्फोरस, कैल्सियम, मैग्नेशियम, सल्फर, पोटासियम, जिंक, बोरोन, मैगनीज, मोलिब्डेनम, घुलनशील लवण और लौह ) की आवश्यकता होती है, जो की इस शुद्ध व् प्राकृतिक मिट्टी में ही पाये जाते है, पर रासायनिक व् कीटनाशक के प्रयोग से यह सभी तत्व धीरे धीरे नष्ट हो रहे है । यदि इन रसायन का प्रयोग इसी तरह चलता रहा तो इस सदी के अंत तक यह भूमि अपनी उर्वरक शक्ति को पूरी तरह से समाप्त कर देगी और फिर वही समस्या उतपन्न होगी हो जो पिछली सदी में हुई थी। इसलिए हे धरती पुत्र किसानो आप इस रासायनिक खेती को छोड़ कर पुनः जैविक खेती करो जिससे इस भूमि को कभी भी अपनी उर्वरक शक्ति खोने की नौबत न आएं।

हरित क्रांति के नाम पर शुरू की गई इस खेती से अधिक फसल लेने के चक्कर में किसान भाई रासायनिक और कीटनाशक का धुँआधुन्ध प्रयोग कर रहे है, शुरुआती दौर में कुछ दशक तक तो यह किसानो के लिए आश्चर्यजनक लाभदायक थी, और भारतीय अर्थशास्त्रियों ने तो इसे कृषि क्रांति के रूप में लिया ,  लेकिन समय के साथ किसानों व् वैज्ञानिकों को अहसास हुआ की इन रसायन के प्रयोग से न केवल कृषि योग्य भूमि को नुकशान पहुँच रहा बल्कि मनुष्य और पशुओं को भी भारी नुकशान हो रहा है। 
यदि अब भी अगर आप सोय रहे तो वो दिन दूर नही जब आपको यह दोहा सुनना पड़े

"अब पछताए क्या होए, जब चिड़िया चुग गई खेत"
इसलिए हे धरती पुत्र किसानों अब आप जागो और आपको अपने पुरखो से मिली उपजाऊ जमीन को बंजर मत बनाओ इसे सम्भालो और इसे जैविक से सृंगार करवाओ। 
अगर अब भी आप नही जागे तो अपनी आनेवाली पीढ़ी को बंजर भूमि के साथ गरीबी दे कर जाने को मजबूर होना पड़ेगा ।
यदि आप को यकीन नही हो तो में एक उदहारण आपको बताता हूँ 
आपने यह तो जरूर महसूस किया होगा की रासायनिक खादों के लगातार इस्तेमाल से आपके खेत की मिट्टी अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है । आप सोचकर देखिये की आज से 10 साल पहले जितनी फसल लेने के लिए आपको जितनी रासायनिक खाद और कीटनाशक डालने की जरूरत थी आज उतनी ही फसल के लिए उससे 3 गुना ज्यादा खाद डालनी पड़ती है 
इसलिए हे धरती के लाल, भूमि पुत्रों आप के पास अब भी बक्त है , आप सम्भल जाओ और जैविक खेती को अपनाओ 
भारत भाग्य विधाता - किसान

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