*सबसे ऊँचा धर्म है गोसेवा का काम*
जगमाल सिंह राजपुरोहित
मोदरान न्यूज जालोर
सबसे ऊँचा धर्म है गोसेवा का काम ।
जीते जी धन-यश मिले मरने पे प्रभु-धाम ॥
गाय श्रेष्ठ प्राणी बहुत इस सम और न कोई।
करे जो गोसेवा सदा प्रिय प्रभु का होई ॥
खाके तृण दे दूध जो उस सम कौन उदार ?
उस गोमाता को करूँ नमन मैं बारम्बार ।।
दूध घी मक्खन तथा छाछ ये हमको देत ।
बदले में बस तृण सदा गो माता ही लेत ॥
दे करके जो दूध घृत करे परम उपकार।
उपकारी गोमात को वंदन शत शत बार ।।
गोबर व गोमूत्र भी आते कितने काम।
ईंधन व आरोग्य की गोमाता है धाम ॥
मरकर भी करती सदा हमपे ये उपकार।
अस्थि चर्म व सींग से वस्तु बने अपार ॥
तैंतीस कोटि देवता करे गाय में वास ।
हो जाता संपन्न वो जो रखे गाय को पास ॥
जन्म से लेके मृत्यु तक करे सतत उपकार।
ऐसी गो माता भरे, अन्न-धन का भंडार ॥
लेती कम, देती बहुत अति उदार गो मात ।
है अनुपम आला बहुत, हर इक इसकी बात ॥
बछिया बनती गाय जब दूध पौष्टिक देत।
बछड़ा बनता बैल जब जोते अपने खेत ॥
गो जैसा प्राणी नहीं, निरीह और निष्पाप ।
गोहत्या सम है नहीं, जग में कोई पाप ॥
गोसेवा जो भी करे, रहे सदा खुशहाल ।
दूध घृत का पान कर होता बहुत निहाल ॥
स्वस्थ रहे तन सर्वदा जीवन हो निर्धार ॥
गोसेवा मन से करे, होत त्रिविध कल्याण।
ज्ञान कर्म भक्ति फले प्रभु-सेवा सम जान ॥
पावन हो परिवेश व रोग शोक भग जाय।
त्रिविध ताप का नाश हो जब गौ घर में आय ॥
पेस्टीसाइड ने किया खेती को बरबाद।
शुद्ध अन्न चाहो यदि डालो गोबर खाद ॥
सभी धनों में श्रेष्ठतम गोधन को ही जान।
लक्ष्मी का भंडार बस गोमाता को मान ॥
सभी राष्ट्र समृद्ध हैं, जहाँ विपुल गो मात।
सभी जगह संपन्नता, अन्न-धन नहीं समात ॥
डेनमार्क, स्वीडेन या होवे न्यूजीलैण्ड।
गो-कृपा से ही सुखी देखो नीदरलैण्ड ॥
होवे घर घर गाय तो सुखी सभी हो जाये।
दूर गरीबी हो सकल, चहुँदिश आनंद छाये।।
जबतक घर घर गाय थी भारत था खुशहाल ।
दूध तथा घी से बहुत देश था मालामाल ॥
कपिला, श्यामा, नंदिनी, कामधेनु शुभ नाम ।
सर्व देव की वासिनी, गोमाता सुखधाम ॥
गोमाता चरणन रहे, रिद्धि सिद्धि का वास ।
जो सेवा उर से करे, हो विघ्नों का नाश ॥
धन्य बहुत वे जीव जो पाये गो आशीष ।
सेवा हरदम ही करे नत कर अपना शीश ॥
मात पिता सम ही करें, गो माँ का सम्मान।
गायों का सम्मान ही भारत की पहचान ॥
गोसेवा में रत रहे, हरदम ही गोपाल।
माखन खा नंदलाल ने मारा कंस कराल ॥
गायों का रक्षण करे, दे करके निज प्राण।
यही हमारा धर्म है, कहते वेद पुराण ॥
रहा नहीं गोवंश तो, होंगे हम बदहाल ।
दूध, घृत व छाछ का, होगा शीघ्र अकाल ॥
गोशाला में दान दे करे पुण्य का काम।
मरके जाता जीव वो सचमुच प्रभु के धाम ।।
गोवध पर प्रतिबंध हो, लगे शीघ्र ही रोक ।
करें माँग पुरजोर सब, शक्ति सकल निज झाँक ।।
[ मोदरान न्यूज]