जगमाल सिंह राजपुरोहित मोदरान न्यूज।
बालोतरा। कल जो विमान दुर्घटना घटी, वह केवल एक समाचार नहीं था — वह एक परिवार का सपना था जो टूट गया, एक बेटी की मुस्कान थी जो सदा के लिए चली गई, और एक समाज की परंपरा थी जिसे आज फिर से सोचने की ज़रूरत है
खुशबू राजपुरोहित, बालोतरा ज़िले की बेटी, अपने विवाह के बाद पहली बार ससुराल जा रही थी यह उसकी नई ज़िंदगी की शुरुआत थी एक दुल्हन जब पहली बार ससुराल जाती है, तो वह सिर्फ एक यात्रा नहीं होती — वह उसके पूरे जीवन का दिशा-निर्देश बनती है मगर नियति ने कुछ और ही लिखा था
जिस दिन खुशबू को उसके मायके से विदा किया गया — वह बुधवार था
मारवाड़ सहित राजस्थान के कई हिस्सों में बुधवार को बेटी की विदाई वर्जित मानी जाती है यह परंपरा वर्षों से बुज़ुर्गों द्वारा बनाई गई थी। उनका मानना रहा है कि बुधवार को “सीक” (विदाई) नहीं दी जाती, क्योंकि यह दिन “वापसी” का सूचक होता है इस दिन विदा की गई बेटी को या तो बार-बार मायके आना पड़ता है, या फिर उसका वैवाहिक जीवन स्थिर नहीं रहता
आज जब खुशबू की यह असमय मृत्यु हुई — वह भी ससुराल पहुँचने से पहले — तो पूरा समाज स्तब्ध है यह केवल एक बेटी का जाना नहीं है, यह एक सदियों पुरानी परंपरा की गंभीर चेतावनी है, जिसे हमने आधुनिकता की दौड़ में कहीं नज़रअंदाज़ कर दिया
यह समय है जब हमें यह समझना होगा कि परंपराएँ केवल अंधविश्वास नहीं होतीं। वे अनुभवों से उपजी जीवन की गहरी सीख होती हैं
आज जब हम खुशबू को अंतिम विदाई दे रहे हैं, तो साथ ही एक चेतावनी भी लिख रहे हैं आने वाली पीढ़ियों के लिए —
"बेटी की विदाई को हल्के में न लें, और अगर बुज़ुर्गों ने कोई दिन वर्जित बताया है, तो उसमें उनका अनुभव और पीड़ा छुपी होती है
0 टिप्पणियाँ